नमस्कार दोस्तों
में आज आपके समक्ष एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ ! जो मेने काफी समय पहले लिखी थी ! आज इस में बदलाव के बाद ब्लॉग के माद्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ ! जिसका शीर्षक है
" क्या है जिंदगी ?"
दोस्तों इस कविता में एक प्रश्न है , क्या है जिंदगी ? जैसा की यह इस कविता का शीर्षक भी है !
इस कविता की हर आने वाली पंक्ति इस प्रश्न का जवाब देने की कोशिश करती है, की यह जिंदगी (जीवन ) क्या है ! लेकिन वह पूर्ण रूप से भी अपूर्ण रह जाती है अथार्थ अपने आप में यह उतर पूरा नहीं होता ! जाने कितने ही जवाब मिलने के बाद भी फिर वही प्रश्न आ जाता है !
क्या है जिंदगी ?
सब कुछ जानते हुए भी यह प्रश्न अधूरा रह जाता है !
क्या है जिंदगी ?
क्या है जिंदगी ?
जीने की है चाह जिंदगी,
मृत्यु की है राह जिंदगी !
सूरज उगता दिन जिंदगी,
सूरज ढलता रत जिंदगी !! १ !!
क्या है जिंदगी ?
रिश्तो का है तार जिंदगी ,
समाज का जंजाल जिंदगी !
दुखो का है पहाड़ जिंदगी,
सुखो का अम्बार जिंदगी !! २ !!
क्या है जिंदगी ?
वर्षा की है फुआर जिंदगी,
गर्मी की है प्यास जिंदगी !
काँटों की है चुभन जिंदगी,
फूलो का है अहसास जिंदगी !! ३ !!
क्या है जिंदगी ?
वायु का है वेग जिंदगी,
लहरों का है भवर जिंदगी,
आसमा की है उचाई जिंदगी
सागर की है गहराई जिंदगी !! ४ !!
क्या है जिंदगी ?
दोस्ती की है चाह जिंदगी
दुश्मनी की है आग जिंदगी !
हर माँ की है आस जिंदगी
पिताजी का विश्वास जिंदगी !! ५ !!
क्या है जिंदगी ?
हर दिन है त्यौहार जिंदगी
हर रात है भार जिंदगी !
तलवार की है धार जिंदगी,
सुई में है सुराख जिंदगी !! ६ !!
क्या है जिंदगी ?
मोती की है चमक जिंदगी,
चाँद में है दाग जिंदगी !
पानी का है पहाड़ जिंदगी,
कोयले की है राख जिंदगी !! ७ !!
क्या है जिंदगी ? क्या है जिंदगी ?
-: Vivek Seth :-
दोस्तों इस कविता के माध्यम से जिंदगी को जितना समझ पाया, उसका कुछ अंश आपके समक्ष रखने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी मेरा अभी भी यह प्रश्न का उत्तर अधूरा है ! हर वक्त से साथ इस प्रश्न का उत्तेर भिन्न रहा है, जैसे-जैसे उम्र बढ़ती रही, उतर बढ़ने के साथ-साथ बदलते भी रहे !
कहते है ना "वक्त हर जख्म को भर देता है" उसी तरह इस बात में भी कोई दो राय नहीं कि जिंदगी का अर्थ समय के साथ बदलता रहता है !
जिंदगी के बारे में आपकी क्या राय है, मुझे आपके जबाब का इंतज़ार रहेगा !