रक्षा बंधन (Raksha Bandhan)
जैसा की आप सभी जानते है, रक्षा बंधन भाई-बहन का त्योहार है ।
जिसमे बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है, भाई बहन को उपहार के साथ आशीष और वचन देता है ।
लेकिन आप मे से आधिकतर लोग इससे जुड़े धार्मिक महत्व के बार मे नहीं जानते होंगे ।
- रक्षा बंधन का त्योहार कब ओर क्यों मनाया जाता है ।
- रक्षा बंधन को किस-किस नाम से जाना जाता है ।
- रक्षा बंधन का त्योहार कब से मनाया जा रहा है ।
- देश के अलग अलग राज्यों मे इसके मनाए जाने की अनूठी व्यवस्था क्या है ?
- इस दिन किस भगवान की पूजा की जाती है, ओर उसकी विधि क्या है ?
- रक्षा बंधन के दिन नारियल पूजन का महत्व क्या है ?
इसी तरह के कई सवालों का जवाब लेकर मै सुमन सेठ आपका स्वागत करती हूँ, आज की इस विडिओ मे।
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रक्षाबंधन दो शब्दों से मिलकर बना है : रक्षा + बंधन अर्थात रक्षा करने का बंधन,
किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना । इस दिन बहने भाई के कलाई पर राखी बांध कर उसे अपने रक्षा के दायित्वो से जीवन भर के लिए बांध लेती है ।
रक्षाबंधन का त्योहार हिन्दुओ का एक प्रमुख त्योहार है । यह त्यौहार भाई- बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्यौहार है ,इस दिन बहने भाई के माथे पर टीका लगाकर रक्षा का बंधन बांधती है , जिसे राखी कहते है । यह त्योहार प्रतिवर्ष सावन -मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है । रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो भाई -बहन के प्यार को अत्यंत मजबूत बनाता है , इस दिन सभी परिवार एक हो जाते है और राखी उपहार और मिठाई देकर अपना प्यार सांझा करते है ।
विषय विस्तार-
भ्रात प्रेम को प्रगाढ़ बनाता रक्षाबंधन का पर्व भाई-बहन के अनकहे स्नेह शपथ का परिचायक है । रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी का कोमल धागा बांधती है । यह धागा उनके बीच प्रेम और स्नेह का प्रतीक होता है । यही धागा भाई को प्रतिबंध करता है कि वह अपनी बहन की हर कठिनाइयों का समय रक्षा करेगा प्राचीन कथाओं के अनुसार एक बार 12 वर्षों तक देवासुर संग्राम होता रहा, जिसमें देवताओं की हार पर हार हो रही थी दुखी: और पराजित इंद्र गुरु बृहस्पति के पास गए वहां इंद्र पत्नी शचि भी थी इंद्र की व्यथा जानकर इंद्राणी ने कहा- कल श्रावण शुक्ल पूर्णिमा है , मैं विधान पूर्वक रक्षा सूत्र तैयार करूंगी, उसे आप स्वस्तिवाचन पूर्वक ब्राह्मणों से बंधवा लीजिएगा । आप अवश्य ही विजय होंगे । दूसरे दिन इंद्र ने इंद्राणी द्वारा बनाए गए रक्षा विधान का स्वस्तिवाचन पूर्वक बृहस्पति से रक्षाबंधन कराया । जिसके प्रभाव से इंद्र सहित देवताओं की विजय हुई । तभी से यह रक्षाबंधन पर्व ब्राह्मणों के माध्यम से मनाया जाने लगा । इस दिन बहने भी भाइयों की कलाई में रक्षा सूत्र बांधती है , और उनके सुखद जीवन की कामना करती है ।
रक्षाबधन के इस पावन पर्व को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा विस्तार पूर्वक दर्शाया गया है
1. राखी का धार्मिक महत्व - रक्षाबंधन का पर्व प्रत्येक भारतीय घर में उल्लास पूर्वक मनाया जाता है।अमरनाथ की अति विख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारंभ होकर रक्षाबंधन के दिन संपूर्ण होती है। कहते हैं इसी दिन यहां का हिमानी शिवलिंग भी अपने पूर्ण आकार को प्राप्त होता है। राखी का त्यौहार कब शुरू हुआ कोई नहीं जानता लेकिन इसके बारे में अनेकों कहानियां प्रचलित है । इतिहास में कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है। जिसमें युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी । श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने अपनी साड़ी में से एक टुकड़ा बांध दिया था । इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट में सहायता करने का वचन दिया था । इस प्रकार की अनेकों गाथाएं रक्षाबंधन के संदर्भ में प्रचलित है।
2. महाराष्ट्र में नारियल पूजन - मुंबई में रक्षाबंधन पर्व को नारली नारियल पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है । जल के देवता वरुण को प्रसन्न करने के लिए समुद्र को नारियल अर्पित किए जाते हैं । वरुण देव ही पूजा के मुख्य देवता होते हैं । नारियल की तीन आंखें होती हैं इस बारे में ऐसा विश्वास किया जाता है । कि ये भगवान शिव के त्रिनेत्रो के प्रतीक हैं , इसलिए इस पर्व पर नारियल या गोले के पूजन की विशेष धार्मिक महत्ता है । घर में बहने भाइयों को राखी बांधती है और उसका पूजन करके मिठाई खिलाकर उनसे उपहार भी प्राप्त करती है । इसी दिन महाराष्ट्रीय में कृष्ण यजुर्वेदि शाखा की श्रावणी का भी विधान है । पुरुष किसी बड़े घर में विभिन्न मंत्रोच्चार के साथ भगवान का पूजन हवन करते हैं , फिर नए यगोपवित (जनेऊ) को प्रतिष्ठित अभिमंत्रित करके पहनते हैं।
3. बहनों की रक्षा का महोत्सव - रक्षाबंधन बहन और भाई के स्नेह का त्यौहार है । पूरा दिन उल्लास व हर्षपूर्ण होता है। घरों की सफाई होती है ,तथा बहने सुबह स्नानादि के पश्चात अधीरता से अपने भाई की प्रतीक्षा करती है ,कि वह आए ताकि उन्हें राखी का पवित्र धागा बांधा जा सके । जब तक बहने भाई को राखी न बांधे तब तक बहने व्रत रखती है । राखी बांधने के बाद ही खाना खाती है । राखी बंधवा कर भाई अपनी बहनों को अनेक प्रकार की भेंट प्रदान करते हैं । विगत समय मैं यह त्योहार पति- पत्नी के आपसी प्रेम और स्त्री सौभाग्य रक्षा का प्रतीक था । रक्षाबंधन के दिन देश में कई स्थानों पर ब्राह्मण पुरोहित भी अपने यजमान की समृद्धि हेतु उन्हें रक्षा बांधते हैं , जिसकी उन्हें दक्षिणा भी मिलती है । रक्षा बांधते समय ब्राह्मण ये मंत्र पढ़ता जाता है-
येन बद्धो बली राजा ,दानवेंद्रो महाबल:।
तेन त्वां प्रतिबद्धनामि,रक्षे ! मा चल ! मां चल !!
अर्थ जिस प्रकार के उद्देश्य पूर्ति हेतु दानव सम्राट महाबली रक्षा सूत्र से बांधा गया था (रक्षा सूत्र के प्रभाव से वह वामन भगवान को अपना सर्वस्व दान करते समय विचलित नहीं हुआ) उसी प्रकार हे रक्षा ! सूत्र आज मैं तुम्हें बांधता हूं तू भी अपने उद्देश्य से विचलित ना हो , दृढ़ बना रहे ।
4. भारत के अन्य प्रांतों में रक्षाबंधन - रक्षाबंधन के अलावा ऐसे कई त्यौहार है , जो भारत के सभी प्रांतों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है । परंतु रक्षाबंधन का यह त्यौहार सिर्फ भाई-बहन तक ही सीमित नहीं है , और भी कई कारणों से यह त्यौहार मनाया जाता है । रक्षाबंधन का यह पावन त्यौहार निम्नलिखित क्षेत्रों में इस प्रकार मनाया जाता है।
(i). गुजरात में रक्षाबंधन - गुजरात में इस त्यौहार को अनोखे तरीके से मनाया जाता है ।इस दिन रूई को पंचगव्य में भिगोकर उसे शिवलिंग के चारों और बांध देते हैं ।इस पूजा को पवित्रोपन्ना कहा जाता है, हालांकि वहां पर भी अपने भाई को राखी बांधी है और खुशी-खुशी रक्षाबंधन का यह पावन त्यौहार मनाते हैं।
(ii). उत्तरी भारत में रक्षा बंधन - उत्तर भारत में रक्षाबंधन को कजरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है या फिर इसे कजरी नवमी भी कहा जाता है । इस दौरान खेत में गेहूं और अन्य अनाज बिछाया जाता है और अच्छी फसल की कामना से माता दुर्गा की पूजा की जाती है।
(iii). भारत के पश्चिमी घाट में रक्षाबंधन - समुद्री क्षेत्रों में इस दिन वर्षा के देवता वरुण देव की पूजा की जाती है । इस दिन समुद्र के देव भगवान वरुण को श्रावण मास की पूर्णिमा को नारियल प्रदान किए जाते हैं , अर्थात समुद्र में नारियल फेंके जाते हैं । मछुआरे भी मछली पकड़ने की शुरुआत इसी दिन से करते हैं । समुद्र से हर प्रकार से इनकी रक्षा करते हैं। इसलिए इस राखी पूर्णिमा को वहां नारियल पूर्णिमा भी कहते है।
(iv). दक्षिण भारत में रक्षाबंधन - दक्षिण भारत में रक्षाबंधन को अबितत्तम कहा जाता है, क्योंकि इस दिन पवित्र धागे जनेऊ को बदला जाता है । इसे ऋषि तर्पण या श्रावणी भी कहते हैं । ग्रंथों में तो रक्षाबंधन को पुण्य प्रदायक पाप नाशक और विष तारक या विष नाशक भी माना जाता है जो कि बुरे कर्मों का नाश भी करता है ।
5. उपसंहार - भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित रक्षाबंधन का त्योहार पूरे हर्षपूर्ण से मनाया जाता है और भविष्य में मनाया जाएगा । लेकिन क्या आपको पता है कि इस त्योहार की शुरुआत सगे भाई बहनों ने नहीं की थी यह कब शुरू हुआ इसे लेकर कोई तारीख तो स्पष्ट नहीं है लेकिन माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत है सतयुग में हुई थी । इस त्यौहार से संबंधित कई कहानियां पुराणों में मौजूद है । यह त्यौहार भाई-बहन का ही नहीं बल्कि सबके लिए महत्वपूर्ण है । राखी का यह धागा रक्षा करने वाले हर उस व्यक्ति को बांधा जाता है ,जो हमारी रक्षा करते हैं चाहे वह हमारे सेना के जवान हो या हमारे माननीय मुख्यमंत्री या राष्ट्रपति इत्यादि । रक्षाबंधन हमें सिखाता है कि हमें सबसे मिल जुल कर प्रगाढ़ प्रेम बना कर रखना चाहिए ,जैसे भाई बहनों के बीच का प्रेम होता है यह त्यौहार हमारे संस्कृति की पहचान है ।
अतः हमें इस से सीख ले कर, एक डोर में बंधकर रहना चाहिए।
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https://youtu.be/PueAl-5cClA
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~ सुमन सेठ ~